स्विंग ट्रेडिंग स्ट्रॅटेजी (Swing Trading Strategies

हैलो दोस्तो नमस्कार आज हम बात करने वाले है Swing Trading क्या है, कैसे करते है, क्या फायदा ओर क्या नुकसान होता है, इसके बारे मे  विस्तार से चर्चा करते है।

स्विंग ट्रेडिंग (Swing Trading) :

स्विंग ट्रेडिंग इसमें लोग आने वाले दो-तीन दिन या सप्ताह से आने वाली चाल के आधार पर पोजिशन लेते है और उसमें से मुनाफा हासिल करने का प्रयास करते है। बाज़ार ऐसे रेन्ज में आया हो और उसमें आने वाली चाल अथवा स्थापित ट्रेन्ड में अगर कम कालावधी में आ सकने वाली चाल की गिनती बैठती हो तो पोजिशन लेकर उसका फायदा उठाना चाहिए। इसके लिए बहुत अभ्यास की जरूरत होती है। उसमें बाज़ार के बाद में और बाज़ार के दरम्यान ध्यान रखना आवश्यक है। इसलिए जो सक्रिय ट्रेडर है उन्होने इसी तरह की पोजिशन लेनी चाहिए। डिफेन्सिव्ह निवेशकों को इस प्रकार की पोजिशन लेने से दूर रहना हितावह होता है।

सिर्फ सुरक्षित निवेश करनेवाले निवेशकों के लिए सलाह  :

एकबार मंदी की शुरूआत हुई और जब तक फिर से दिर्घ कालावधी के लिए खरीदी का संकेत मिलता नहीं तब तक अपनी पूँजी संभालकर रखने में ही हित होता है। मंदी में लोगों को सस्ते भाव से मिलने वाले शेअर्स खरीदने होते है। इसलिए वह चालू गिरावट में ज्यादा होकर खरीदी करते हुए दिखाई देते। लोग ‘स्वयं खरीदी कीजिए और महँगाई से बेचिए’ इस कहावत के अनुसार सस्ता खरीदने निकलते है पर महँगाई से बेचने की बात वह हमेशा भूलते है। बात जब निवेश की होती है तब आपके निर्णय का आधार क्या सस्ता मिल रहा है और क्या महँगा मिल रहा है इस पर नहीं होना चाहिए। क्योंकि अलग अलग कालावधी में कोई शेअर्स आपको सस्ते लगते है और वही शेअर्स समय बदलने पर कम भाव से मिलते हो तो भी आपको महँगे लग सकते है।

फंडामेन्टल अॅनालिसिस के आधार पर किसी भी स्तर पर शेअर्स सस्ते या महँगे हैं यह तय किया जा सकता है। परंतु बात जब निवेश की होती है। तब आप तेजी के शुरूआत में ठिक समय पर निवेश किया तो वही आपके लिए महत्व का होता है।

आप अगर तेजी की शुरूआत में शेअर्स पकड़ने की कला जानते हो तो उसके बाद कोई शेअर्स 2-4 वर्षा से सुस्त पड़े अवस्था में है उनको खरीदने की क्या जरूरत है?

लोग ऐसा इसलिए करते है कि उन्हें सस्ता ढूंढने की आदत होती है और इसलिए ही सस्ता समझकर ज्यादातर घटने वाले शेअर्स में स्वंय की पूँजी का निवेश करते हुए दिखाई देते है।

 वह किस्मत वाले होगे तो इस प्रकार से किए निवेश में कोई शेअर्स कई बार बढ़ने में सफल भी हो सकते है। पर दुसरे विषय में उनकी पूँजी दिर्घ कालावधी के लिए अटकी हुई दिखाई देती है।

लोग मंदी में शेअर्स खरीदके तेजी की राह देखते है। सब से बड़ा सवाल यह है कि किसी भी शेअर्स में कब तेजी आएगी यह बताना मुश्किल है। बाज़ार में फिर से तेजी कब होगी यह बताना भी मुश्किल होता है और अगर मंदी ज्यादा समय तक रही तो लोगों ने खरीदे शेअर्स में ॲवरेज से गिरावट होते हुए नज़र आती है, जो बहुत ही बूरा समझा जाता है। अगर आपको किसी कारण से पैसों की जरूरत हो और शेअर्स बेचने पड़े तो ऐसे वक्त नुकसान सहना पड़ता है।

स्विंग ट्रेडिंग के प्लान :

 शेअर बाज़ार में निवेश के लिए कई व्यूह रचनाएं उपलब्ध है। आपने देखा है उस तरह से अलग अलग ट्रेडिंग के तरीके का आधार अलग अलग परिस्थिति पर निर्भर होता है। किसी भी व्यूह रचना का निर्माण और उस पर अमल करने से पहले उसे अच्छी तरह से जाँच करनी चाहिए।

• प्रत्येक निवेशक को स्वयं की अनुकूलता के अनुसार व्युहरचना के व्यक्तिगत गिनती का चयन करके उसका अवलंब करना चाहिए। ज नहीं की सभी व्युहरचनाएं सब के लिए अनुकूल हो। पर प्रत्येक व्यूहरचना में नीचे दर्शाए गुण तो होते ही है।

स्विंग ट्रेडिंग मुनाफा मिलता नहीं तब तक निवेश जारी रहेगा और नुकसान ठिक समय पर काटा जाएगा ऐसी व्यवस्था होना जरूरी है?

जैसे नुकसान में शेअर्स में से समय के अनुसार स्टॉपलॉस करके बाहर नहीं निकलना यह बहुत बड़ी गलती साबित हो सकती है। उसी तरह से अच्छा मुनाफा देनेवाले शेअर्स में से बहुत ही पहले बाहर निकलना भी उतनी ही बड़ी गलती साबित हो सकती है। कई बार जब ऐसा होता है तब लोग स्वयं की गलती मानते है ‘मुनाफा भले ही कम मिला हो’ ऐसा कहकर समाधान मानते है। पर वह भूलजाते है कि गलती के कारण गवाया मुनाफा भी नुकसान ही समझा जाता है। क्योंकि अगर मुनाफे की चिंता न हो तो शेअर बाज़ार में आने का कोई अर्थ नहीं है? लोग अज्ञान और व्यूह रचना के अभाव के बिना गवाया हुआ मुनाफा अपने नसीब में ही नहीं था और जितना नसीब में होता है उतना ही मिलता है ऐसा मानकर स्वयं का दिल रखते है। उनकी स्वयं की इस झूठी समझदारी के बदले योग्य व्यूह रचना के द्वारा कई बार मुनाफा लिया जा सकता है। इसी तरह से किसी खराब निवेश में स्टॉपलॉस करना सिखना भी उतनाही महत्वपूर्ण है। परंतु स्टॉपलॉस करने की आदत सभी लोगों में नहीं होती। कितने प्रतिशत तक नुकसान बांधना चाहिए उसमें विविध परिचलों के आधार पर एक स्टॅन्डर्ड निश्चित करके चले तो हर समय व्यवहारीक निर्णय लिया जा सकता है।

स्टॉपलॉस ऐसे स्तर पर होना चाहिए जहा पर ज्यादातर पूँजी और मुनाफा सुरक्षित रहेगा। :

इसलिए व्यवहारीक रूप से चार्ट के आधार पर ऐसा स्तर निश्चित करना चाहिए जहां पर शुरूआत में प्रतिशत की दृष्टी से नुकसान की संभावना कम होती है और आगे जा कर बढ़ने के बाद भी स्टॉपलॉस और ट्रॉलिंग स्टॉपलॉस का निर्माण ऐसे स्तर पर होना चाहिए जो निश्चित करता है कि आपको मिलने वाला मुनाफा पूरी तरह से धूल नहीं जाएगा। आपको कोई एक शेअर्स में नुकसान भले 25 से 30% हुआ तो भी डायवर्सिफिकेशन को लेकर आपके पोर्टफोलीओ पर उसका परिणाम उतना अधिक नहीं होता और प्रतिशत की दृष्टी से 4% से अधिक पूँजी नहीं जाती है।

ऐसा करने से आपका पोर्टफोलीओ संतुलित रखने में मदद होती है। क्योंकि बाज़ार में जब गिरावट आती है तब सभी शेअर्स जो आपके पोर्टफोलीओ में होते है उन में एक साथ और एक जैसी गिरावट दर्शाने की संभावना नहीं के बराबर होती है।

कम कालावधी में बाज़ार में आनेवाले उतार-चढ़ाव में आपको स्पष्टरूप से निर्णय लेना चाहिए :

 जब बाज़ार में अफरातफरी होती है तब कम कालावधी के उतार-चढ़ाव में अगर आपने निश्चित मापदंड तय किया हो और उसके आधार पर निर्णय लिया तो बाज़ार के उतार-चढ़ाव का मानसिक परिणाम आप पर नहीं होता और उस वक्त तनाव में लिए निर्णय के कारण होनेवाले नुकसान से बचा जा सकता है।

निष्कर्ष : 

दोस्तो आर्टिकल पढ़ने के बाद आपको समझा आ गया होगा कि स्टॉक मार्केट में स्विंग ट्रेडिंग करने से क्या क्या फायदे और क्या क्या नुकसान हो सकते हैं,स्विंग ट्रेडिंग काम समय के लिया एक अच्छा होता है, अगर आर्टिकल अच्छा लागे तो अपने दोस्तो  के साथ शेयर करना ना भूले। 

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