Moving Average Convergence Divergence ( MACD) indicator क्या है प्रयोग क्यों किया जाता है ।
स्टॉक मार्केट में शेयर के प्राइस और ट्रेंड का पता लगाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के इंडिकेटर मौजूद है उन्हीं में से एक इंडिकेटरMACD (Moving Average Convergence Divergence) है जो मार्केट के प्राइस एक्शन और ट्रेंड का पता चलता और ट्रेंडिंग कराने में मदद करता है। चलिए अब हम मुविंग ऐवरेज कन्वर्जन्स डायवर्जन्स के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं ।

MACD – (Moving Average Convergence Divergence) :
यह एक महत्व का सूचक है जो मोमेन्टम में होनेवाला बदलाव दर्शाता है। और कोई भी ट्रेन्ड स्थापित रहेगा या नहीं इसका भी संकेत देता है। यह भी एक सुस्त सूचक है इसके लिए वह संकेत थोड़ा ज्यादा देते हैं।
निर्माण :
एमएसीडी में दो लाईन होती है। एक फास्ट लाईन और दुसरी स्लो लाईन। यह दोनों लाईन मुख्य जीरो के स्तर के ऊपर और नीचे घुमते हुए नज़र आता है। जिसके अभ्यास पर से ट्रेन्ड की स्थापना और ‘खरीदी’ या ‘बिक्री’ का संकेत हासिल किया जा सकता है।
टाईम फ्रेम :
(12,25,9) का सेटिंग प्रमुखरूप से सभी चार्टिंग सॉफ्टवेअर में दिखाई देती है। अनुभव के अनुसार इसमें बदलाव किया जा सकता है।
उपयोग :
एमएसीडी में दो लाईन होती है। एक फास्ट लाईन और दुसरी स्लो लाइन। यह दोनों लाईन जब एक दुसरे को ऊपर की या नीचे की दिशा में काटती है तब खरीदी और बिक्री के संकेत मिलते है। उसी तरह से यह दोनों लाईन ‘0’ के बेस लाईन के ऊपर या नीचे की ओर घुमते हुई दिखाई देती है जिसके अभ्यास पर से विविध संकेत हासिल किए जा सकते हैं।
संकेत :
- जब फास्ट लाईन स्लो लाईन को ऊपर की दिशा में काटती है तब खरीदी का संकेत मिलता है। उसी तरह से जब फास्ट लाईन स्लो लाईन को नीचे की दिशा में काटती है तब बिक्री का संकेत मिलता है।
- जब तक फास्ट लाईन स्लो लाईन के ऊपर की दिशा में होती है तब तक चालू ट्रेन्ड स्थापित रहता है ऐसा कहा जा सकता है। उसी तरह से जब फास्ट लाईन स्लो लाईन के नीचे होती है तब चालू मंदी की दिशा का ट्रेन्ड स्थापित होता है ऐसा कहा जा सकता है।
- जब तक दोनों लाईन घुमकर एक दुसरे को विरूद्ध दिशा में काटती नहीं तब तक ट्रेन्ड रिवर्सल नहीं आता।
- 0 बेस लाईन है जिसके ऊपर दोनों लाईन हो तो मजबूत तेजी हो सकती है। उसी तरह से दोनों लाईन ‘0’ के नीचे हो तो मजबूत मंदी हो सकती
- ‘0’ जीरो के ऊपर ट्रेन्ड रिवर्सल की संभावना होती है। साथ ही ‘0’ के नीचे भी मंदी में से तेजी की दिशा का ट्रेन्ड रिवर्सल आ सकता है। पर किसी भी समय तेजी की स्थिति तभी स्थापित हो सकती है जब दोनों लाईन *’0′ के ऊपर निकलकर स्थापित होती है। तब तक ‘0’ के नीचे दिखनेवाली बढ़ोतरी दुध के उबाल की तरह हो सकती है।
- एमएसीडी जब ‘डबल टॉप’ बनाता है या ‘डबल बॉटम’ बनाता है तब शेअर्स या बाज़ार में ट्रेन्ड रिवर्सल की संभावना अधिक होती है।
- उसी तरह से बढ़नेवाला ‘बॉटम’ मजबूती का संकेत देता है और घटनेवाला टॉप’ मंदी का संकेत देता है।

MACD और रेन्ज :
अलग अलग चार्ट के अभ्यास पर से दिखाई देता है कि एमएसीडी किसी निश्चित स्तर पर सपोर्ट लेता है या रेसिस्टन्स देता है। समय के अनुसार एक ही चार्ट पर भी एमएसीडी की रेन्ज बदलते नज़र आती है।
- विविध शेअर्स, जैसे कि रू. 25 से 30 तक की रेन्जवाले शेअर्स में एमएसीडी 5से 50 की रेन्ज बनाते हुए नज़र आता है। उसी तरह से रू. 2000 से 5000 के शेअर्स में एमएसीडी का स्तर 100 से 500 या ज्यादा का बनाते हुए दिखाई देता है। • इसलिए किसी भी चार्ट पर एमएसीडी की रेन्ज पता करके उसके अनुसार निर्णय लेना चाहिए।
- एमएसीडी ‘monthly’ और ‘weekly’ चार्ट पर दुर्बल होता है तब मंदी की दिशा की स्थिति शुरू होती है। इसलिए दिर्घ कालावधी का संकेत मिलने के बाद उसी दिशा में ट्रेडिंग करने का निर्णय लेना चाहिए।
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डायवर्जन्स (Divergence) :
- जब शेअर्स का भाव नया ऊंचा भाव बनाता है और एमएसीडी नए ऊंचे स्तर पर जाने में असफल होता है तब नकारात्मक डायवर्जन्स है ऐसा कहा जाता है। ऐसे वक्त समझना चाहिए कि तेजीवाले दुर्बल हो रहे है और कम कालावधी में गिरावट की शुरूआत होगी।
- उसी तरह से शेअर्स नया निचला स्तर बनाते है और एमएसीडी में नया निचला स्तर तैयार नहीं होता तब समझना चाहिए कि मंदीवाले दुर्बल हो रहे है और कम कालावधी में तेजी की दिशा की चाल नज़र आती है।

मूल बात :
नई ट्रेडिंग तकनीकें और विचार हर दिन विकसित होते रहते हैं। लेकिन किसी को यह समझने की जरूरत है कि वह कौन सी तकनीक और किन ट्रेडिंग इंडीकेटर्स के साथ सहज है और उसके अनुसार प्रयोग करते है। यदि ट्रेडर अपने जीवन में अनुशासन बनाए रखता है तो उसके पास असाधारण लाभ कमाने की संभावना है।