शेअर बाजार का मूल ज्ञान – शेयर मार्केट का गणित

अगर आप स्टॉक मार्केट या शेयर मार्केट के बारे में सब कुछ हिंदी में सीखना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। आज इस पोस्ट को पढ़ने के बादआपको शेअर बाजार का मूल ज्ञान और शेयर बाजार से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब मिल जाएगा और अगर आप Stock Market या Share market में बिल्कुल beginner भी हैं तो भी आप इसे अच्छे से समझ जाएंगे।

शेअर बाजार का मूल ज्ञान - शेयर मार्केट का गणित
शेअर बाजार का मूल ज्ञान – शेयर मार्केट का गणित

क्योंकि आज हम आपको शेयर मार्केट की Full knowledge और इससे जुड़े हुए आपके सभी सवालों का जवाब देंगे।

Table of Contents

शेअर बाज़ार में निवेश की शुरूआत कैसे करनी चाहिए ? 

सबसे पहले अपने ब्रोकर का चयन कीजिए । उस ब्रोकर का सेबी में रजिस्ट्रेशन होना चाहिए । एकबार यह संपूर्ण कार्यवाही पूर्ण होने के बाद शेअर्स के लेन – देन के लिए आपको अपने ब्रोकर को फोन करना पड़ता है या फिर आप उसके ऑफिस में जाकर टर्मिनल के सामने बैठकर ट्रेडिंग कर सकते हैं । या फिर आप ऑनलाईन भी ऑर्डर प्लेस कर सकते है । ब्रोकर की जरूरत किसलिए होती है ? साथ ही ब्रोकर और क्लाइंड अग्रीमेन्ट पर हस्ताक्षर करके जरूरी कार्यवाही पूरी कीजिए । साधारण रूप से तीन या चार दिनों में आपको क्लायन्ट कोड मिलता है , जो भविष्य में होनेवाले पत्र व्यवहार और आपको मिलनेवाले कॉन्ट्रॅक्ट नोट में दर्शाया जाता है । आपको डिमेट अकाऊन्ट भी खोलना पड़ता है जो आपके ब्रोकर के पास या मान्यता प्राप्त बैंक में खोला जा सकता है।सेबी के रेग्युलेशन के अनुसार रजिस्टर्ड लोग ही काम कर सकते है । इसलिए रजिस्ट्रेशन किए हुए ब्रोकर के मदद से ही ट्रेडिंग करना संभव होता है । 

इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग क्या होता है ?

ईलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की शुरूआत के बाद अब ब्रोकर को ट्रेडिंग फ्लोर पर जाकर ट्रेडिंग नहीं करना पड़ता । अब कंप्यूटर पर ट्रेडिंग किया जाता है । जो एक्सचेन्ज के साथ वी सेट द्वारा जुड़ा होता है । अब इंटरनेट के माध्यम भी ट्रेडिंग करने की सुविधा उपलब्ध हैं।इसलिए हम घर बैठे बैठे या स्वयं के ऑफिस से या खुद के कंप्यूटर की मदद से ट्रेडिंग कर सकते है । इसका मुख्य नियम यह है कि जब आपको शेअर बाजार का मूल किसी निश्चित भाव से तुरंत ट्रेडिंग करना हो तो इसके लिए ब्रोकर को फोन करना नहीं पड़ता और इसमें होनेवाले विलंब के कारण भाव बदलन की संभावना नहीं होती । आप तुरंत चाहे उस भाव पर ट्रेडिंग कर सकते हैं । 

कॉन्ट्रॅक्ट नोट क्या होता है ? 

अपने किए ट्रेडिंग का भाव ,समय,संख्या और दलाली आदि को दशनिवाला नोट  कॉन्ट्रॅक्ट नोट सभी दलाल के पास मिलता है । या कॉन्ट्रेक्ट नोट निश्चत किए फॉर्मेट में निवेशक को दिया जाता है । जो निवेशक और ब्रोकर इनके बिच हुए ट्रेडिंग का कानूननी प्रमाण होता है । कॉन्ट्रॅक्ट नोट की दो प्रतीया निकाली जाती है जिसमें से एक ब्रोकर और दुसरी निवेशक के पास होती है । यह  कॉन्ट्रॅक्ट नोट आपको 24 घंटे के अंदर मिल जाती है । 

बुक क्लोजर और रेकॉर्ड डेट याने क्या ? 

बुक क्लोजर द्वारा किसी भी दिन कंपनी में कितने निवेशकों का रजिस्ट्रेशन हुआ है यह देखा जाता है । रेकॉर्ड डेट  डिविडन्ड ,बोनस राईट आदि जैसे लाभ ऐसे निवेशकों को मिलता है । जिनका नाम इस तारीख से पहले लिखा होता है । उसका हो नाम रिकॉर्ड डेट है । निवेशक किसी भी शेअर कम बोनस , कम डिविडन्ड , कम – राईट को खरीद के एक नए निवेशक की तरहे उसका फायदा होने की आशा करते है । इसके लिए शेअर्स उनके नाम पर ट्रान्सफर होना जरूरी होता है ।अगर वैसा नहीं हुआ तो उनको यह फायदा नहीं मिलता इस तरह से शेअर्स की खरीदी करने वाले घाटे में ट्रेडिंग करते हैं । इसलिए आवश्यक है कि आप जो शेअर्स कम – बोनस , आदि जैसे लाभ के साथ खरीदके समय के अनुसार उनके बुक क्लोजर से स्वयं के नाम पर कर लेने चाहिए । यह देखना भी आवश्यक है कि आपन जो भाव दिया था उस भाव की गिनती बाद में होती है । उस से पहले नहीं होती । 

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शेअर बाजार का मूल ज्ञान रेकॉर्ड डेट और बुक क्लोजर डेट इन दोनों में क्या फर्क होता है ?

रेकॉर्ड डेट के विषय में कंपनी स्वयं का रजिस्टर बंद नहीं करती । यह तारीख कंपनी के कितने लोग किसी भी अधिकार के दावेदार है यह जानलेनी की अंतिम तारीख होती हैं । बुक क्लोज के विषय में जो शेअर्स बाज़ार में नहीं बेचे जा सकते उनके ट्रांसफर डीड पर बुकक्लोजर के पहले की तारीख होती है । 

नो डिलीवरी पिरीयड क्या होता है ? 

जब कोई कंपनी बुक क्लोजर का विज्ञापन करती है तब एक्सचेन्ज उसके लिए नो डिलीवरी पिरीयड निश्चित करता है । इस समय के दरम्यान सिर्फ ट्रेडिंग की अनुमती दी जाती है । साथ ही इस ट्रेड का सेटलमेन्ट नो डिलीवरी का समय पूरा होने के बाद ही होता है । इस तरह से ऐसा होता है कि वहा पर उस कंपनी ने प्रसिद्ध किए फायदे के हकदार हो तो उन्हे अलग निकाला जा सकता है । 

एक्स – डिविडन्ड क्या होता है ? 

किसी कंपनी ने डिविडन्ड जाहिर करने के बाद वह ‘ एक्स – डिविडन्ड ‘ कहलाता है । इसका अर्थ ऐसा होता है कि अब उन शेअर्स का ‘ डिविडन्ड ‘ देने के बाद का भाव शुरू है । ऐसा होने से शेअर्स खरीदनेवाले को इस से पहले दिए गए डिविडन्ड का लाभ नहीं मिलता । 

एक्स – डेट क्या होती है ? 

बोनस ,नो- डिलीवरी के पहले दिन को एक्स – डेट कहा जाता है । जो राईट , डिविडन्ड जैसे विज्ञापन कंपनी द्वारा किया जाता है जिसके लिए बुक क्लोजर और रेकॉर्ड डेट निश्चित की गयी है । तो फिर जो कुछ शेअर्स इस तारीख को या इसके बाद की तारीख को खरीदते है वह इसका फायदा मिलने के हकदार नहीं होते । 

बोनस क्या होता है ? 

जब आप निवेश करते है तभी आपके पूंजी में वृद्धी होने की गिनती नहीं की जाती। पर कंपनी के सभी उधारी का भुगतान करने के बाद जो सरप्लस बाकी होता है उसका हिस्सा मिलता है ऐसा भी हो सकता है । पर वितरण सौभाग्य से ही होता है ऐसा नज़र या सरप्लस खाते में जमा किया जाता है । ठिक बदले वह तरह से रिजर्व जब यह रकम बहुत ही बड़ी हो जाती है तब कंपनी ऐसे रकम को रिजर्व खाते में से एक एन्ट्री द्वारा शेअर कॅपिटल खाते में जमा कर सकती है । इस तरह से बाज़ार आउटस्टैंडिंग शेअर्स को बढ़ाया जा सकता है और हर एक निवेशक को बोनस शेअर्स दिए जा सकते है जो एक निर्धारीत बोनस रेश्यो के अनुसार दिए जाते हैं । इसके ईश्यू को बोनस ईश्यू कहा जाता है । अगर बोनस रेश्यो 1:2 होगा तो उसका अर्थ ऐसा होता है कि प्रत्येक 2 शेअर्स के पिछे शेअर धारक को 1 शेअर मिलता है । इसलिए शेअर धारक के पास पहले के 2 शेअर्स हो तो अब उनके पास कूल मिलाकर 3 शेअर्स होते है । 

स्प्लीट क्या होता है ?

यह एक ऐसी बुक एन्ट्री है जिसमें शेअर्स के फेसव्हॅल्यू के बदले आऊटस्टँडिंग शेअर्स में बढ़ोतरी की जाती है । अगर कंपनी ने टू – वे स्प्लीट किया तो उसका अर्थ यह होता है कि रू 10 की फेसव्हॅल्यू के शेअर्स रू 5 की फेसव्हॅल्यू वाले बन जाते है और जिनके पास 1 शेअर होता है अब उनके पास २ शेअर्स होते है । 

बायबॅक क्या होता है ?

नाम दर्शाता है उस तरह से यह एक विकल्प है जिस से कंपनी स्वयं के शेअर्स निवेशक के पास से फिर से खरीदती है यह कार्य वह अलग अलग प्रकार से कर सकती है । उस निवेशक के पास से कम संख्या में शेअर्स खरीद सकती है या फिर टेन्ड ऑफर द्वारा ओपन बाज़ार में से खरीद सकती है । साथ ही बुक बिल्डिंग के तरीके से खरीद सकती हैं । स्टॉक एक्सचेन्ज के पास से या ऑड लॉट से खरीद सकती है । 

शेअर बाज़ार का मूल ज्ञान सेटलमेन्ट सायकल क्या होता है ? 

इस बाज़ार में जो शेअर्स ट्रेड होते हैं उनके अकाऊंन्टींग पिरीयड गिनती की जा सकती है । दोनों एनएसई और बीएसई रोलींग सेटलमेन्ट का उपयोग करते है । हर एक सेटलमेन्ट के आखिर में किसी भी शेअर दलाल को जो देना होता है या बाज़ार में से माल और रूपए लेने होते है उसकी गिनती की जाती है और हर शेअर दलाल को उसके नियमानुसार समय पर भुगतान करना होता है । 

रोलींग सेटलमेन्ट क्या होता है ?

रोलींग सेटलमेन्ट द्वारा तय किया जाता है कि किसी भी दिन का ट्रेडिंग भाव और सेटलमेन्ट की कालावधी में निश्चित दिनों में सेटल किया जाता है । फिलहाल संपूर्ण कालावधी यह पाच दिनों का माना जाता है । यह वेईटिंग कालावधी हर प्रकार के ट्रेड के लिए समान होता है । 

लोगों ने स्वयं के शेअर दलाल को शेअर्स और रूपए कब देने चाहिए ?

 एक विक्रेता के रूप में आपकी सेटलमेन्ट अच्छी तरह से हो इसके लिए आपको कॉन्ट्रॅक्ट नोट मिलने के बाद शेअर्स आपके ब्रोकर को ट्रान्सफर करने चाहिए । जो पे – ईन दिन से पहले किसी भी हालत में होना चाहिए ।  फिलहाल आप जिस दिन शेअर्स बेचते हैं उस दिन के बाद तिसरे दिन पे ईन होता है । इसलिए यह हितावह होता है । दूसरे दिन शेअर्स के लिए सब से अच्छा विकल्प यह ऑटो – पेईन का होता है । यह अगले अध्याय में विस्तार पूर्वक बताया गया है । उसी तरह से खरीदी करने वाले को जब कॉन्ट्रॅक्ट नोट मिलता है तभी रूपए भर देने चाहिए । जो पे – ईन दिन से पहले होना जरूरी है । आपके ब्रोकर के साथ के संबंध के अनुसार इसमें आपको थोड़ी बहुत छूट मिल सकती है । 

शॉर्ट सेलिंग क्या होता हैं ?

  • किसी व्यक्ति को कुछ शेयर में गिरावट  होगी ऐसा लगता हो तो वह शेयर्स पहले बेचकर और बाजार बंद होने से पहले फिर से खरीद के काम किया तो उसे शॉर्ट सेलिंग कहते हैं,
  • अगर आपके अंदाजा के अनुसार शेयर का भाव उस गिरावट पर तो उसे का फायदा होता है ,
  • उदाहरण किसी को ओएनजीसी में गिरावट होगी ऐसा लगता है और और चालू बाजार का भाव 2000 हो तब बेच  दीजिएगा उसके बाद भाव 990 होता है तब अच्छी खरीदारी करने पर उन्हें ₹10 का मुनाफा हुआ ऐसा कहा जा सकता है,
  • इस तरह से खाते में शेयर न होने पर भी पहले बिक्री करके और बाद में खरीद के जो ट्रेडिंग किया जाता उसे शॉर्ट सेलिंग कहते हैं।

नोट  

  • शॉर्ट सेलिंग ईन्ट्राडे में किया जा सकता है । साथ ही फ्युचर के विषय में फ्युचर की बिक्री करके एक से ज्यादा दिनों तक शॉर्ट सेलिंग की पोजिशन खड़ी की जा सकती है । 
  • जब आपको लगता हो कि अब गिरावट अटक गई है और फिर बढ़ोतरी होगी तब ट्रेलिंग स्टॉप लॉस के अनुसार पोजीशन एक समान करनी चाहिए।

बॉन्ड डिलीवरी क्या होता है ?

सेबी ने अच्छे और खराब शेयर की डिलीवरी के लिए एक जैसे नियम बनाया है बॉन्ड डिलीवरी आनी शेयर सर्टिफिकेट फटा हुआ हो खराब हुआ हो लिखावट में बदलाव किया हो कंपनी के नाम में गलती हुई हो आदि कारणों का समावेश किया जाता है वह डिलीवरी तभी संभव है जब वह फिजिकल फॉर्म में हो। डीमेट में बॉन्ड डिलीवरी की संभावना बिल्कुल नहीं होती।

फिजिकल शेअर्स का ट्रान्सफर किस तरह से होता है ?

एक बर शेअर्स बेचने के बाद वह शेअर्स उनके साथ ठिक तरह से भरकर , हस्ताक्षर करके और स्टॅम्प किए हुए डीड के साथ जोड़कर उस कंपनी में खरीददार के नाम से भेज दिए जाते हैं । एक बार शेअर्स ट्रान्सफर रजिस्टर में नया नाम लिखवाने के बाद ट्रान्सफर की प्रक्रिया पूर्ण हुई ऐसा कहा जाता है ।

निवेशकों के अधिकार

  •  कंपनी में से सभी प्रकार की जानकारी हासिल करने का अधिकार । 
  • ,ट्रान्सफर , सब डिविजन इन जैसे कार्य बिना कोई विलंब कंपनी से किए जाते है ।
  • निवेशकों को अधिकार होता है कि भविष्य में आनेवाले हर ईश्यू में वह सबस्क्राईब कर सकते है । *ब्रोकरेज 2.5 से अधिक चार्ज नहीं कि जाती । 
  • निश्चित किए फॉर्मेट में शेअर दलाल द्वारा कॉन्ट्रॅक्ट मिलता है जिसमें ब्रोकरेज और भाव अलग अलग दर्शाए जाते है । 
  • जिन्होंने शेअर्स खरीदे है वह उनके खाते में ज्यादा से ज्यादा 5 दिनों के अंदर ट्रान्सफर होने चाहिए और जिन्होंने शेअर्स बेचे है उनके रूपए भी इसी समय में उन्हें मिलने चाहिए ।
  • अगर शेअर दलाल के साथ किसी कारणवश तक्रार हुई तो निवेशक एक्सचेन्ज की आर्बिट्रेज सुविधा का उपयोग कर सकते है । 
  • लिस्टेड कंपनी या शेअर दलाल के खिलाफ फिर्याद दाखिल करने के लिए संपर्क करे , इन्वेस्टर सर्विस सेल , बॉम्बे स्टॉक एक्सचेन्ज लिमिटेड , पी.जे.टॉवर , दलाल स्ट्रीट , फोर्ट , मुंबई- 400001 .

ऑक्शन क्या होता है ? 

जब कोई शेअर धारक शेअर बेचने के बाद समय के अनुसार शेअर्स की डिलिवरी देने में असफल होता है तब ऑक्शन द्वारा बाज़ार उस अंतर घाटे को एकसमान करता है । इसके लिए हर एक निवेशक को ध्यान में रखना जरूरी है कि वह जब शेअर्स बेचते है तब उनके पास उतनी संख्या में शेअर्स होने चाहिए क्योंकि ऑक्शन के कारण उन्हें बिना मतलब बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है । अब ऑक्शन जिस भाव से हुआ वह भाव और बिक्री भाव के बिच का फर्क सकारात्मक होगा तो होनेवाला मुनाफा ईन्वेस्टर प्रोटेक्शन फंड में जमा किया जाता है । इसलिए ऑक्शन से फायदा कभी भी नहीं होता । पर घाटा मात्र हो सकता है । पहले दिन के बिक्री भाव से अगर ऑक्शन के दिन का भाव याने की पाँचवे दिन का भाव अधिक होता है वह फर्क या 20% के ऊपर भी हो सकता है । भाव बिक्री भाव के नीचे बंद हुआ तो ऑक्शन में मुनाफा होता है । जो ऊपर बताया है उस तरह से ईन्वेस्टर प्रोटेक्शन फंड में जमा होता है।

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शेअर दलाल का चयन

  • आपका शेअर दलाल , ब्रोकर या सब – ब्रोकर सेबी में रजिस्टर्ड होना जरूरी 
  • दलाल के साथ काम करने से पहले जरूरी करारनामा करना चाहिए । आजकल हर एक सेगमेन्ट में रू 100 के स्टॅम्प वाले फॉर्म होते है जिसे भरकर वह आपका रजिस्ट्रेशन कर सकते है और यह करना जरूरी भी है । *लोग टॅक्स बचाने के लिए स्वयं के दलाल के खाते में ट्रेडिंग करते हैं । ऐसा करना आपके हित में नहीं होता । अपने स्वयं के खाते में ही ट्रेडिंग करने का आग्रह कीजिए । जिस से पारदर्शकता होगी । 
  • दलाल के पास से लेन – देन की कॉन्ट्रॅक्ट नोट समय समय पर ले लेनी चाहिए । जिसमें लेन – देन का समय , ट्रेडिंग नंबर आदि की संपूर्ण जानकारी होती है ।
  • दलाल के पास से समय समय पर रकम मिलने का आग्रह कीजिए । उसमें ढीलढाल हो तो दलाल बदलना हितकारक होता है । 
  • आपने खरीदे हुए शेअर्स आपके खाते में कम से कम तीन दिन और ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह के अंदर जमा होने चाहिए । के पास जाने का आग्रह कीजिए ।

निष्कर्ष

मैं आशा करता हूं कि आपको शेयर बाजार का मूल ज्ञान मिल गया होगा। पूरी जानकारी हिंदी में हैं, पोस्ट पसंद आई होगी। और आपको शेयर बाजार (Stock Market) के बारे में काफी चीजें पता चल गई होगी.

अगर आप  शेअर बाजार का मूल ज्ञान  को आसान भाषा में हिंदी में सीखना चाहते हैं तो इस blog की और भी पोस्ट पढ़ सकते हैं। अगर आपका कोई सवाल है तो हमसे कमेंट में पूछ सकते हैं। 

FAQ :

Equity क्या है ?

Equity को आम तौर पर शेअरधारकों की इक्विटी या आम भाषा में बोलो तो निजी तौर की कंपनियों के लिए मालिकों की इक्विटी कहा जाता है। इक्विटी उस धन की राशि का प्रतिनिधित्व करती है जो कंपनी के शेयरधारकों को उस स्थिति में वापस कर दी जाती है, अगर कंपनी के सारे एसेट लिक्विडेट हो जाते हैं और लिक्विडेशन के मामले में कंपनी के सारे कर्ज़ चुका दिए जाता हैं।

कौन सा शेयर खरीदना चाहिए 2022 ?

Exide Industries
Tata power
IEX
Reliance
Tata Motors

मोबाइल से शेयर कैसे ख़रीदे ?

मोबाइल ट्रेंडिंग ऐप डाउनलोड करके आप शेअर ख़रीदे सकते है।

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